चेक bounce के मामलो में कानूनी करवाई केसे होती है, cheque bounce ke case kya hota hai
चेक bounce के मामलो में कानूनी करवाई केसे होती है यह जानने के लिए सबसे पहले हमें यह जानना होगा की चेक क्या होता है।
138 cheque dishonour or bounce |
चेक क्या होता (WHAT IS CHEQUE)
चेक एक ऐसा लिखित दस्तावेज है (bills
of Exchange यानि Negotiable instrument ) है जो cheque लिखने वाला, बिना किसी शर्त के अपने बैंक को आदेश
देता है कि मांग करने पर चेक प्राप्तकर्ता को भुगतान कर दिया जाए। यदि सरल शब्दों में समझे तो, चेक एक प्रकार का
नोट (रुपया) है जितना रुपये उसपे लिखे होते है।- उदाहारण के लिए यदि कोई चेक पर दस हज़ार लिखा है
तो वो दस हज़ार रुपये का नोट है जो केवल बैंक में ही चल सकता है। और चेक प्राप्तकर्ता (peyee) को बैंक से उतने
रुपये प्राप्त हो जाते है।
चेक जारीकर्ता- (drawer of cheque) चेक लिखने वाले को, जो
भुगतान का आदेश देता है उसे चेक जारीकर्ता (drawer of
Cheque) कहते है।
बैंक- जिसको पक्ष चेक का भुगतान का
आदेश दिया जाता है उसे बैंक कहते है।
चेक धारक (Drawee और payee)-जो व्यक्ति भुगतान प्राप्त करता है उसे चेक धारक
यानि भुगतान प्राप्तकर्ता (Drawee) कहते है।
चेक के प्रकार (Types of cheques)
1. Bearer cheque :- साधारण चेक:- साधारण चेक वे चेक होते है जिनका भुगतान चेक प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को बैंक द्वारा कर दिया जाता है चाहे चेक उस व्यक्ति के नाम हो या ना हो।
2.
Crossed cheque :
रेखाकिंत चेक वे चेक
होते है जब चेक के ऊपर दो समान्तर रेखाए खिंच दी जाती है और चेक लिखने वाला चाहता
है की इस चेक का भुगतान नकद ना मिले बल्कि चेक प्राप्तकर्ता के अकाउंट में जमा
करके मिले।
3.
Order Cheque : आर्डर चेक वे चेक होते
है जब चेक पर bearer के स्थान पर order लिखा होता है ऐसे चेक का
भुगतान जिस व्यक्ति को किया जाता है। उसे payee कहा जाता है और उसे
भुगतान उसकी पहचान होने के बाद की किया जाता है।
4.
Posted Dated Cheque: ये वे चेक होते है जिनका भुगतान Future
की किसी date
पर होता है, जो चेक पर पहले
से ही लिखी होती है। और ऐसे चेक भुगतान उस date से पहले honoured
नहीं हो सकता यानि उसका भुगतान उस date से पहले
नहीं हो सकता।
5.
Stale Cheque: स्टेल
चेक वे चेक होते है जिनको बैंक में भुगतान के लिए validity date निकल जाने के बाद यानी तीन महीने के बाद जमा किया
जाता है ऐसे चेक को बैंक हमेशा dishonoured करता है।
चेक बाउंस या Dishonoured केसे होता है।
जब चेक प्राप्तकर्ता (payee) द्वारा बैंक में भुगतान प्राप्त करने के लिए
प्रस्तुत किया जाता है तो या तो बैंक उस चेक को honoured कर देता है। मतलब उसने अमाउंट
प्राप्तकर्ता के अकाउंट में जमा हो जाते है उसे चेक का honoured कहा जाता है या उस
चेक को बिना पेमेंट के return कर देता जिसे चेक का bounce या dishonoured या चेक का अस्वीकृत
होना कहा जाता है।
चेक bounce होने के कई कारण हो सकते है जिसमे चेक लिखने वाले के बैंक
अकाउंट के पर्याप्त बैलेंस न होना या चेक पर लिखी राशि से कम बैलेंस होना, मुख्य
कारण होता है।
signature न मैच होना, गलत कंटेंट फिल होना या overwriting होना भी कारण है
जो धारा 138 के तहत अपराध की श्रेणी में आता ही जो दंडनीय है, अगर अकाउंट किसी कारणवश फ्रीज़ हो चुका है तो भले ही अकाउंट में कितना ही
पैसा क्यों न हो, चेक स्वीकार नहीं किया जायेगा।
अगर आपने 3 महीने पुराना चेक लगा दिया है या फिर ऐसी चेक
जिस पर आगे की दिनांक लिखी है, तो बैंक चेक को रिजेक्ट कर देगा।
आप यह बात जानते ही होंगे की चेक की मान्यता सिर्फ 3 महीने के लिए ही होती है, अगर 3 महीने बाद जब उसी चेक को बैंक में लेकर जाते है तो वह अमान्य
हो जाता है और बैंक उसे वापस कर देती है। इसके बाद में उस चेक की कोई वेल्यू नहीं
रह जाती है।
अगर चेक काटने वाले व्यक्ति ने उल्टे-सीधे
हस्ताक्षर कर दिये हैं और बैंक में specimen सिग्नेचर से मैच नहीं हो रहे हैं, तो चेक बाउंस हो जाता
है।
अगर आपने किसी का नाम लिखा और उसे काट कर
दूसरे का नाम लिख दिया। या फिर दिनांक में ऐसे ही परिवर्तन किये तो बैंक चेक को
रिजेक्ट कर देगा।
SECTION 138 OF NEGOTIABLE INSTRUMENT ACT, 1881 (CHEQUE
BOUNCE होने के बाद कानूनी करवाई)
इस अधिनियम की धारा 138 के अनुसार चेक का अस्वीकृत होना एक दंडनीय अपराध है और इसके लिए दो साल का
कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैंl
यदि चेक bounce हो जाता है और प्राप्तकर्ता को भुगतान नहीं मिलता तो वह चेक
जारीकर्ता के ऊपर कानूनी करवाई कर सकता है।
1. Legal
notice :- चेक bounce होने के बाद चेक प्राप्तकर्ता (Drawee) चेक
bounce होने की तिथि के 30 दिन के अन्दर चेक जारीकर्ता को चेक राशि का भुगतान करने
का Legal Notice के द्वारा मांग करता है की चेक लिखने वाला Legal Notice मिलने की तिथि से 15
दिन में चेक अमाउंट का भुगतान करे।
चेक प्राप्तकर्ता को चेक bounce होने के बाद
अपने बैंक से एक return memo मिलती है जिस दिन उसे ये return memo मिलती है उस दिन
से शिकायतकर्ता के पास लीगल नोटिस भेजने के 30 दिन होते है।
2. आपराधिक शिकायत:- यदि 15 दिन का mandatory
समय ख़त्म होने के बाद,
जब चेक जारीकर्ता भुगतान नहीं करता है तो चेक प्राप्तकर्ता (payee) Negotiable
instrument Act की धारा 138 के तहत चेक जारीकर्ता के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकता
है।
लेकिन अगर चेक जारीकर्ता
नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर चेक राशि का भुगतान
करता है, तो वह किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। अन्यथा, शिकायतकर्ता नोटिस में निर्धारित 15 दिनों की
समाप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर उस क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के कोर्ट में
शिकायत दर्ज कर सकता है।
शिकायतकर्ता
को शिकायत के साथ सभी original documents
शिकायत के साथ जमा कराने जरुरी है जैसे चेक, return memo, legal notice,
legal notice प्राप्त होने का सबूत आदि।
आपराधिक शिकायत
मजिस्ट्रेट की कोर्ट में दर्ज होने के बाद कोर्ट की करवाई।
1. शिकायत मिलने के बाद
कोर्ट शिकायत और इसके साथ filed सभी documents को अच्छी तरह से consider एवं
scrutinize करता है और कोर्ट को लगता है की section 138 के तहत अपराध हुआ है तो,
संज्ञान (cognizance) लेके accused को कोर्ट में हाज़िर होने के लिए summon जारी
करता है।
2. summon मिलने के बाद
Accused कोर्ट में appear होता है तो सबसे पहले वह अपनी bail कराता है इसके बाद
कोर्ट accused को section 251 of Crpc के अनुसार notice फ्रेम (case बना देता है),
इसके बाद accused शिकायतकर्ता को दुबारा witness box में बुलाने की दरखास्त देता है
ताकि accused उसका cross examination कर सके और अपने पक्ष के Witness और evidence
कोर्ट के समक्ष लाने की request करता है कोर्ट ऐसी request मान लेता है ताकि
accused को अपनी बात साबित करने का पूरा मौका मिले।
3. Evidence पूरा होने के
बाद कोर्ट दोनों पक्षो की arguments सुनता है और जजमेंट देता है यदि accused को
सजा होती है तो जेल भेज दिया जाता है और यदि accused बरी होता है तो उससे section
437-A का bail बांड लेके बरी कर देते है।
नोट- section 138 यानि
चेक bounce के मामलो में शिकायतकर्ता को अपनी हर बात beyond reasonable doubt
साबित करनी होती है केवल चेक अपने पास होने पर और शिकायत करने से ही case नहीं
जीता जा सकता।
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