This website provides information about Indian law, law notes, law updates and latest Judgements

Saturday, September 15, 2018

Mutual Divorce vs Contested Divorce-हिन्दू विवाह अधिनियम- HINDU MARRIAGE ACT, 1955


हिन्दू विवाह अधिनियम- HINDU MARRIAGE ACT, 1955

Mutual Consent Divorce vs Contested Divorce

Mutual Divorce-Contested Divorce-hindu-marriage-act
Mutual Divorce-Contested Divorce-hindu-marriage-ac

शादी दो लोगो का एक सामाजिक मिलन है जिसको सामाजिक, कानूनी और धार्मिक तौर पर मान्यता प्राप्त होती है, शादी एक ऐसा संस्थान है जिसमे दोनो पति पत्नी एक शादी को सफल बनाने के लिए बहुत मेहनत करते है
लेकिन विवाह विच्छेद या तलाक एक ऐसा कानूनी रास्ता है जिसके द्वारा पति पत्नी में से कोई भी एक दुसरे से कानूनी रूप से अलग होता है Hindu Marriage Act, 1955, की धारा 13 के अनुसार, कोई भी एक पक्ष spouse धारा 13 में बताये गए आधार पर अपने spouse से contested Divorce या Mutual Divorce विधि के जरिये कानूनी रूप से अपने विवाह का विघटन (विच्छेद) कर सकते है
Mutual Divorce-Contested Divorce-hindu-marriage-act
Mutual Divorce-Contested Divorce-hindu-marriage-act

हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार पति पत्नी धारा 13 के अनुसार अपना विवाह विच्छेद कर सकते है हिन्दू विवाह विच्छेद अधिनियम, विवाह विच्छेद करने के दो तरीके बताता है   
1.     आपसी सहमती से विवाह विच्छेद (Mutual Consent Divorce)   

2.     केस लड़कर या संघर्ष कर कर विवाह विच्छेद (Contested Divorce) 


Mutual Consent Divorce या आपसी सहमती से तलाक क्या होता है

Hindu Marriage Act, 1955 की धारा 13–B के अनुसार पति पत्नी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में Joint Mutual Divorce Petition filed करके एक दुसरे से आपसी रजामंदी से भी तलाक ले सकते है लेकिन इसके लिए उन्हें शपथ पत्र (affidavit) पर अपनी सहमती लिख कर देनी होती है की वे एक दुसरे से शांति पूर्वक तलाक लेकर अलग अलग होना चाहते है
सरल शब्दों में कहे तो Mutual Divorce एक ऐसा कानूनी रास्ता है जिसके द्वारा पति पत्नी एक दुसरे से तलाक ले सकते है इसके लिए सबसे जरुरी जो चीज है वो है आपसी सहमती जो बिना किसी दबाव और धमकी या किसी बात से प्रभावित होकर न दी गयी हो और पति पत्नी एक दुसरे से कम से कम एक वर्ष से अलग अलग रह रहे हो ये दोनों ही बातें होना अनिवार्य है इन शर्तो में से कोई भी शर्त पुरी नहीं हो सकती तो सग्मती या रजामंदी से तलाक नहीं हो सकता
रजामंदी या सहमति से तलाक लेने से पहले या ये कहे की कोर्ट जाने से पहले ज्यादातर पति पत्नी एक दुसरे से जो भी लेना या देना (Alimony) है या उनके बच्चे है तो बच्चो  की Custody किस spouse के पास होगी पहले से ही निश्चित कर लिया जाता है कई बार ऐसा देखा गया है की ज्यादातर मामलो में Alimony और दहेज़ का समान जिसमे सबसे मुख्य Gold ज्वेलरी होती है और इस Issue के decide न होने के कारण दोनों पक्ष एक दुसरे से कोर्ट में कई वर्षो तक कोर्ट में लड़ाई करती है जब ये Issue एक बार decide हो जाता है तब भी वे एक दुसरे से आपसी सहमती से तलाक ले लेते है

Mutual Divorce-Contested Divorce-hindu-marriage-act
Mutual Divorce-Contested Divorce-hindu-marriage-act

Procedure for Joint Mutual Divorce Petition 

रजामंदी से तलाक लेने के लिए दोनों पक्षो यानि पति – पत्नी को दो चरणों से गुजरना होता है जिसे First Motion of Mutual Divorce u/s 13B(1) Hindu Marriage Act, 1955 और Second Motion of Mutual Divorce u/s 13B(2) Hindu Marriage Act, 1955 कहा जाता है इसके लिए दोनों पक्षो को एक साथ मिलकर एक Joint Mutual Divorce Petition, अपने, अपने affidavits व् original Marriage Proof व् उनके पहचान पत्रों आदि के साथ अपने डिस्ट्रिक्ट की family कोर्ट में सबमिट करनी होती है इसके बाद family कोर्ट दोनों पार्टीज के original documents और Petition को अच्छी तरह से scuritinize करके दोनों के statement record करती है इसके बाद कोर्ट को लगता है के Mutual Divorce मना करने के लिए कोई कारण नहीं है ये Mutual Divorce की petition allow कर दी यानि विवाह विच्छेद या तलाक हो जाता है 
हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 13-B(1) के अनुसार जा एक बार first motion पास हो जाता है तो दोनों पक्षो को Second Motion of Mutual Divorce u/s 13B(2) Hindu Marriage Act, 1955 file करने के लिए कम से कम 6 महीने, और अधिक से अधिक 18 महीने का समय दिया जाता है जिसको फॉलो करना अनिवार्य होता है इसका मतलब है की दोनों पति पत्नी को कम से कम 6 महीनो इन्तजार करना होता है इस बीच इस ये माना जाता है की यदि दोनों पक्षो का मन बदल जाता है और अब दोनों पक्ष एक साथ रहने के लिए राज़ी है तो उन्हें second motion की Petition फाइल करने की जरुरत नहीं है और 6 महीने गुजरने के बाद भी यदि दोनों पक्ष यानि पति-पत्नी दोनों एक साथ नहीं रहना चाहते तो दोनों पक्ष एक बार फिर से Second Motion of Mutual Divorce u/s 13B(2) Hindu Marriage Act, 1955 की petition file करके तलाक ले कर पूर्ण रूप से हमेशा के लिए अलग अलग हो सकते है Second Motion of Mutual Divorce के दौरान भी दोनों पक्षो को First Motion के प्रक्रिया की तरह ही कार्यवाही से गुजरना होता है
लेकिन हाल ही में Hon’ble Supereme Court of India ने अपने कई judgments में 6 माह के इन्तजार को ख़तम कर दिया है की यदि कोर्ट को लगता है की दोनों पक्षो में साथ साथ रहने की बिलकुल भी गुन्जायिश नहीं है तो कोर्ट ये 6 महीने का लम्बा इन्तजार ख़तम कर सकती है और First Motion of Mutual Divorce के एक सप्ताह के बाद  Second Motion of Mutual Divorce की Petition स्वीकार करके तलाक दे सकती है
    
Contested Divorce (केस लड़कर या संघर्ष करके विवाह विच्छेद या तलाक)

तलाक या विवाह विच्छेद की बात जब उठती, जब पति पत्नी में से कोई एक अपनी शादी तोड़ने का निश्चय कर लेता है और आगे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता, Hindu Marriage Act, 1955 में तलाक लेने का कानून काफी जटिल है और तलाक लेने वालो के लिए तलाक लेने का फैसला बड़ा की दुखदायी होता है

Mutual Divorce-Contested Divorce-hindu-marriage-act
Mutual Divorce-Contested Divorce-hindu-marriage-act

केस लड़कर या संघर्ष करके विवाह विच्छेद या तलाक लेना
Contested Divorce


हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार केस लड़कर या संघर्ष करके विवाह विच्छेद करना भी एक प्रावधान है जिसके अनुसार पति या पत्नी कोई एक भी पक्ष इस अधिनियम की धारा 13 में बताये गए विवाह विच्छेद के आधार पर विवाह विच्छेद हो सकता है    
विवाह विच्छेद के आधार

Ground of Divorce under section 13 of Hindu Marriage Act, 1955
धारा 13 विवाह विच्छेद के आधार:-
 (1) कोई विवाह, भले वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व या पश्चात् अनुष्ठित हुआ हो, या तो पति या पत्नी पेश की गयी याचिका पर तलाक की आज्ञप्ति द्वारा एक आधार पर भंग किया जा सकता है कि -

(i) दूसरे पक्षकार ने विवाह के पश्चात् अपनी पत्नी या अपने पति के आलावा किसी व्यक्ति , के साथ स्वेच्छया मैथुन (sex) किया है; या
(i-क) विवाह के पश्चात् जीवन साथ के साथ क्रूरता का बर्ताव किया है; या
(i-ख) कोर्ट में विवाह विच्छेद मुकदमा होने के ठीक पहले कम से कम दो वर्ष की कालावधि तक जीवन साथी को (अर्जीदार) अभित्यक्त (परित्याग) कर रखा है; या
(ii) दूसरा पक्षकार दूसरे धर्म को ग्रहण करने से हिन्दू होने से परिविरत हो गया है, या
(iii) दूसरा पक्षकार असाध्य रूप से विकृत-चित रहा है लगातार या आन्तरायिक रूप से इस किस्म के और इस हद तक मानसिक विकार से पीड़ित रहा है कि अर्जीदार से युक्ति-युक्त रूप से आशा नहीं की जा सकती है कि वह प्रत्यर्थी के साथ रहे।

स्पष्टीकरण -
(क) इस खण्ड में 'मानसिक विकार' अभिव्यक्ति से मानसिक बीमारी, मस्तिष्क का संरोध या अपूर्ण विकास, मनोविक्षेप विकार या मस्तिष्क का कोई अन्य विकार या अशक्तता अभिप्रेत है और इनके अन्तर्गत विखंडित मनस्कता भी है;
(ख) 'मनोविक्षेप विषयक विकार' अभिव्यक्ति से मस्तिष्क का दीर्घ स्थायी विकार या अशक्तता (चाहे इसमें वृद्धि की अवसामान्यता हो या नहीं) अभिप्रेत है जिसके परिणामस्वरूप अन्य पक्षकार का आचरण असामान्य रूप से आक्रामक या गम्भीर रूप से अनुत्तरदायी हो जाता है और उसके लिये चिकित्सा उपचार अपेक्षित हो या नहीं, या किया जा सकता हो या नहीं, या
(iv) दूसरा पक्षकार याचिका पेश किये जाने से अव्यवहित उग्र और असाध्य कुष्ठ रोग से पीड़ित रहा है; या
(v) दूसरा पक्षकार याचिका पेश किये जाने से अव्यवहित यौन-रोग से पीड़ित रहा है; या
 (vi) दूसरा पक्षकार किसी धार्मिक आश्रम में प्रवेश करके संसार का परित्याग कर चुका है; या
(vii) दूसरे पक्षकार के बारे में सात वर्ष या अधिक कालावधि में उन लोगों के द्वारा जिन्होंने दूसरे पक्षकार के बारे में, यदि वह जीवित होता तो स्वभावत: सुना होता, नहीं सुना गया है कि जीवित है।

स्पष्टीकरण -
इस उपधारा में 'अभित्यजन' पद से विवाह के दूसरे पक्षकार द्वारा अर्जीदार का युक्तियुक्त कारण के बिना और ऐसे पक्षकार की सम्मति के बिना या इच्छा के विरुद्ध अभित्यजन अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा अर्जीदार की जानबूझकर उपेक्षा भी है और इस पद के व्याकरणिक रूपभेद तथा सजातीय पदों के अर्थ तदनुसार किये जायेंगे।
(1-क) विवाह में का कोई भी पक्षकार चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पहले अथवा पश्चात् अनुष्ठित हुआ हो, तलाक की आज्ञप्ति द्वारा विवाह-विच्छेद के लिए इस आधार पर कि
(i) विवाह के पक्षकारों के बीच में, इस कार्यवाही में जिसमें कि वे पक्षकार थे, न्यायिक पृथक्करण की आज्ञप्ति के पारित होने के पश्चात् एक वर्ष या उससे अधिक की कालावधि तक सहवास का पुनरारम्भ नहीं हुआ है; अथवा
(ii) विवाह के पक्षकारों के बीच में, उस कार्यवाही में जिसमें कि वे पक्षकार थे, दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की आज्ञप्ति के पारित होने के एक वर्ष पश्चात् एक या उससे अधिक की कालावधि तक, दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन नहीं हुआ है;
याचिका प्रस्तुत कर सकता है।
(2) पत्नी तलाक की आज्ञप्ति द्वारा अपने विवाह-भंग के लिए याचिका :-
(i) इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व अनुष्ठित किसी विवाह की अवस्था में इस आधार पर उपस्थित कर सकेगी कि पति ने ऐसे प्रारम्भ के पूर्व फिर विवाह कर लिया है या पति की ऐसे प्रारम्भ से पूर्व विवाहित कोई दूसरी पत्नी याचिकादात्री के विवाह के अनुष्ठान के समय जीवित थी;
परन्तु यह तब जब कि दोनों अवस्थाओं में दूसरी पत्नी याचिका पेश किये जाने के समय जीवित हो; या
(ii) इस आधार पर पेश की जा सकेगी कि पति विवाह के अनुष्ठान के दिन से बलात्कार, गुदामैथुन या पशुगमन का दोषी हुआ है; या
(iii) कि हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 18 के अधीन वाद में या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अधीन (या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 की तत्स्थानी धारा 488 के अधीन) कार्यवाही में यथास्थिति, डिक्री या आदेश, पति के विरुद्ध पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए इस बात के होते हुए भी पारित किया गया है कि वह अलग रहती थी और ऐसी डिक्री या आदेश के पारित किये जाने के समय से पक्षकारों में एक वर्ष या उससे अधिक के समय तक सहवास का पुनरारम्भ नहीं हुआ है; या
(iv) किसी स्त्री ने जिसका विवाह (चाहे विवाहोत्तर सम्भोग हुआ हो या नहीं) उस स्त्री के पन्द्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पूर्व अनुष्ठापित किया गया था और उसने पन्द्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात् किन्तु अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पूर्व विवाह का निराकरण कर दिया है।

13-क . विवाह विच्छेद कार्यवाही में प्रत्यार्थी को वैकल्पिक राहत 
विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा विवाह के विघटन के लिए अर्जी पर इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही में, उस दशा को छोड़कर जहाँ और जिस हद तक अर्जी धारा 13 की उपधारा (1) के खंड (ii), (vi) और (vii) में वर्णित आधारों पर है, यदि न्यायालय मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह न्यायोचित समझता है तो विवाह-विच्छेद की डिक्री के बजाय न्यायिक-पृथक्करण (Judicial Seperation) के लिए डिक्री पारित कर सकेगा।

Procedure for contested Divorce 
contested Divorce की प्रक्रिया में एक पक्ष (spouse) को दुसरे पक्ष से केस लड़कर तलाक लेता जिसमे किसी एक आधार पर विवाह विच्छेद की Petition डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में file करता है उसे दुसरे पक्ष पर लगाये गए इल्जाम को कोर्ट में सबूतों के साथ साबित करना होता है

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

Recent Posts

sigma-2

Categories

Unordered List

[blogger][disqus][facebook]

Text Widget

Blog Archive

Powered by Blogger.

Mutual Divorce vs Contested Divorce-हिन्दू विवाह अधिनियम- HINDU MARRIAGE ACT, 1955

हिन्दू विवाह अधिनियम- HINDU MARRIAGE ACT, 1955 Mutual Consent Divorce vs Contested Divorce Mutual Divorce-Contested Divorce-hin...

Formulir Kontak

Name

Email *

Message *

Search This Blog

Labels

Categories

Business

Video Of Day

Ads

Recent

Home Ads

Random Posts

Find Us On Facebook

Social

Comments

Sponsor

test

Sponsor

ads

Popular